सब-ए-फुरकत जो आसमाँ देखा,
चाँद तारों को बेबज़ाह देखा,
वो जब मिला तो सोचने लगा मै,
बड़ा ज़िद्दी बड़ा तन्हा पसंद है,
उसके अपनो को भी खफा देखा,
जिसकी आँखों में तेरा चेहरा था,
उसके होठों पे मरहबा देखा,
दौर-ए-चाहत अजीब आलम था,
शाम देखी ना सबेरा देखा,
वो मेरे सामने रहता था मगर,
ना ज़ी भरके कभी उसे देखा,
वो शायद सोचता जा रहा था मुझे,
उसने कुछ मुड़कर इस तरह देखा,
ज़िंदगी कम सी लगी है,
जब कहीं कोई हादसा देखा..!!