हमें तसल्ली कभी सफ़र से हासिल ना हुई,
मुतमईन कर दे ऐसी कोई भी मंज़िल ना हुई,
एक अरसे से कुछ कमी सी है,
ज़िंदगी जैसे मुकम्मल ना हुई,
गम-ए-फिराक ही ता-उम्र उठाएँगे क्या,
बरसों बीते मगर वस्ल ना हुई,
नज़र बेचैन, दिल बेचैन, ये ज़हन बेचैन,
ये तबीयत आज से ज़्यादा कभी बेकल ना हुई..!!