पत्थर नही शीशा नही ना फूल खिला है,
एक अर्श का टुकड़ा हमें ज़मीं पे मिला है,
कहता है दिल मेरा ये मै नहीं कहता,
लगता है जैसे मेरी इवादात का सिला है,
कर इलाही कुछ करम ये दिल है परेशां,
हर शख्स से शिकायत हर शय से गिला है,
अब क्या कहूँ मै शान-ए-हुस्न-ए-यार में हुजूर,
वो है तो इसी दुनिया का पर सबसे जुदा है..!!