बड़ी कशमकश है आख़िर देखे किसे नज़र...
एक चाँद आसमाँ पे है एक चाँद ज़मीं पर,
दिल है के बस बेचैन हुआ जाता है...
ना जानू ख़ुदाया है कैसा ये असर,
वो अर्श से आया हुआ लगता है हमे तो...
मिलते हैं कहाँ आज ऐसे लोग ज़मीं पर,
काश! गुंजाइश ज़रा सी और होती चादर में...
या के फिर मै होता चादर के बराबर,
बेवजह हम एक अज़ाब झेलते रहे...
समझा था गम-ए-आशिक़ी को अपना मुक़द्दर,
है आफकारा इस क़दर बीमार-ए-मोहब्बत...
ना दिन का पता है उसे ना रात की खबर..!!