शक्ल जब आईने में देखता हूँ
अपने अंदर किसी को ढूंढता हूँ
जब भी होता हूँ मै कहीं तन्हा
बस तुझे हाँ तुझे ही सोचता हूँ
जिस तरफ से वो इधर आते है
देर तक उस तरफ मै देखता हूँ
जाने क्या हो गया है गुम मेरा
मै जिसे चारों तरफ ढूंढता हूँ
सफ़र कितना है बाकी अभी मेरा
हर कदम पर मै यही सोचता हूँ