घर की ताबीर इस तरह से हो,
राब्ता मेरा हर जगह से हो,
दीन की दौलत हो वफ़ा उसकी,
मेरा महबूब ही खुदा सा हो,
कोई भी अक्स ना रहे बनके,
जैसे दिल कोई आईना सा हो,
यूँ मेरी बात पे खामोश है वो
जैसे वो कोई बज़ुबाँ सा हो,
या खुदा आख़िरी खाहिश है मेरी
जहाँ में कोई बेवफा ना हो..!!