हमको तन्हा छोड़ दिया है साथ निभाने वालों ने..
कब से ढूंड रहा हूँ कोई नाम-ओ-निशाँ नही तेरा,
शायद कोई मज़ाक़ किया है पता बताने वालों ने..
कभी गलियों बाज़ारों में तो कभी छत पर चौपालों पर,
कितना वक़्त किया है जाया तेरे चाहने वालों ने..
कितनी शिद्दत से उनको दिल में बसाया हमने,
फिर भी ज़ख्मी किया है दिल को दिल में बसने वालों ने..
कुछ यादें उनकी भी जली हैं मेरे गर के साथ-साथ,
कितना अच्छा काम किया है आग लगाने वालों ने..
अफशोश अपनी मौत का हरगिज़ नही हमें,
हमको जहर पिलाया भी तो हमपे मरने वालों ने..!!