कभी सोचा ना था बचपन इतना जल्दि खो जाएगा।
जिम्मेदारियो के बोझ तले हर वो सपना गुम हो जाएगा।
याद आते है वो स्कूल कॉलेज के दोस्त...वो साईकिल की सवारी।
वो मिट्टि के टिले...वो बारिश का पानी।
चाँकलेट पे मिले वो स्टिकर्स...जिन्हे लेके होती थी मारामारी।
वो झुठमूट का रुठना कह के "जा,तु मेरा दोस्त नही "..........
पर झगडा होते ही आ के बोलना "साले,तु नही तो में भी नही"।
वो टिचर की डाँट पे...एक्टिंग सहम जाने की....
मन हि मन हँस के बोलना "तुझें भी तो डाँट पडी"।
त्योहारो में घर-घर घुमना,भुल के मजहब और जात...
शीर कुर्मे के साथ दिवाली कें लड्डू,और बडों का आशिर्वाद।
पिकनिक के वो धमाल गाने... नाचना बेसुरि ताल पर...
चुईंगम चबाके चिपकाना ,टिचरजिके शर्ट पर।
वो आखरी दिन स्कूल-कॉलेज का, "यार मिलते रहना "बोले आँखों का पानी....
चुप-चुपके मन भरकें देखना वो क्लास की "अपनी वाली"।
जिंदगी के इस मुकाम पर, कभी पिछे मुड के भी देखो यारो...
स्कूल-कॉलेज के वो दिन, कभी बैठ के याद करो यारो।
तब पता चलेगा, क्या खोया क्या पाया।
तब समझोगे, अरे,सारा जीवन तो यूँही गवाया।
वो बचपन वापस दे दे कोई... करो रे कोई चमत्कार....
दे दे वापस मेरी खिल-खिलाति हुई हंसी, और मेरे कमीने दोस्तों के बाहों का हार...!!