हमें भी हक़ है, अपना वक़्त बिताने का,
खुले गगन में बाहें फैलाये, पँछी सा उड़ जाने का,
आरज़ू-ए-आफ़ताब सा, आसमां में बिखर जाने का,
तमना-ए-झील का, समंदर में मिल जाने का,
बुनियाद से परे, अपनी पहचान समंदर सा बनाने का,
फूलों सा मुस्कुराना कभी पहाड़ों सा अड़ जाने का,
अंजानी सी राहों में आकर, अपना मुक़ाम बनाने का,
दुनिया से दूर, अपने ख़ाबों का शहर बसने,
मत रोक अड़िग मन मुझको....
मुझे हक़ है अपने ख्वाबों को आज़माने का,
अपने सपनों का शीश महल, अपने जज़्बातों से सजाने का..!!
_रमेश