या तो अपना दिल ही रवाँ-रवाँ ना हो,
या फिर इस बेघर का कोई ठिकाना हो,
वक़्त बेवक़्त सोचता हूँ मै,
आए दिन उसपे कुछ एहसान करो,
किसी को अपना गर बनाना हो,
हर घड़ी उसके दिल की बात करो,
तुम्हें जिसका भी दिल चुराना हो,
पहले कुर्बनियाँ दो उसके लिए,
किसी पे हक़ अगर जताना हो,
कब तलक छुप सकेगा राज कोई,
जले भी आग और धुआँ ना हो,
बात दिल में हो और कह ना सको,
इससे बेहतर है जूस्तज़ु ना हो...!!