कल तक ये था भूल हुई नादानी में,
लेकिन अबके साल तो रोए जवानी में,
वो भी दिन थे सावन में घर से निकले,
लुत्फ़ लिया हमने बरसात के पानी में,
लेकिन बारिश की बूँदों में बात कहाँ वो,
मज़ा है जो आँखों से बहते पानी में,
काश गौर ना देते तेरे तबस्सुम पर,
तो आज को यूँ ना रोते हम नखानी में,
सब कुछ तो लुट चुका है तेरी चाहत में,
सोचता हूँ अब किसकी दूं कुर्बानी मै..!!