ज़िंदगी जब तेरे बिना होगी,
क्या तेरी आरज़ू भी ना होगी ?
मर गया गर तेरी खातिर तो बता,
फिर भी होठों पे तेरे ना होगी ?
कब ये सोचा था हमने रोते हुए,
के तेरी आँख नम भी ना होगी ?
तू भी समझेगा दर्द-ए-शहनाई,
जब तेरे हाथों में हिना होगी..!
जो भी कहना है इसी वक़्त कहो,
फिर कभी आज कल तो ना होगी.,!
खुद ही जागेगा सारी रात उठकर,
जब तेरे गम की शहर ना होगी..!!