अपनी मंज़िल को शायद पीछे छोड़ आए हैं,
ऐसा लगता है हम कुछ दूर निकल आए हैं,
मै वो अब मै नही रहा जोकि मै था कभी,
अब तो वो भी बदले - बदले नज़र आए हैं,
राब्ता हर चीज़ से छूट सा गया है,
ऐसा तो नही हम खुद में सिमट आए हैं,
बागडोर-ए-ज़िंदगी से हाथ ज़ख़्मी हो गये,
मौत ने भी हम पे बड़े सितम ढाए हैं,
हर दर-ओ-दीवार हमसे कर रही है कुछ सवाल,
हम मुद्दतो के बाद अपने गाँव आए हैं,
दिल है के बस ढूंढता रहता है हर दम,
हम ना जाने कौन सी शय भूल आए हैं..!