ना जाइए हुजूर हमें तन्हा छोड़कर,
भला क्या मिलेगा आपको दिल मेरा तोड़कर,
क्या खूब है जाना-ए-तगाफुल तो देखिए,
वो सामने बैठे मगर नज़रों को फेर कर,
ढलता आफताब देख रहे हैं वो छत पर,
ऐ शाम गुज़रने में थोड़ी और देर कर,
यही वो पल है ज़िनकी सदियाँ मुंतज़िर थी,
बस आता है सुकून तुम्हें देख-देख कर,
ये भी तो है इज़हार-ए-मोहब्बत के सरे राह,
जाते - जाते देखना वो मुझको पलटकर,
क्या करूँ के मुझको ज़ुबाँ खोलने ना दे,
कुछ है जो थम गया है इन होठों पे आकर,
ऐसा भी नही के बात ना हुई,
वो सब समझ गये मेरी नज़रों को देखकर..!!