गम ही गम है इस बेदर्द जमाने मैं,
चलके थोड़ा लुत्फ़ उठा मयखाने में..
मै तो बस नाकाम रहा इसको समझाने में..
तुझ जैसे यहाँ बेवस आवाम हज़ारों हैं,
एक तू ही नही तन्हा मशरूफ जमाने में..
तुमने ठुकराया तो हुए ज़िंदगी से रूबरू,
कितनी देर लगा दी तुमने आईना दिखाने में..
मैं कब लाया था मय पे नीयत लेकिन,
उनका अक्स उभर आया पैमाने में..
हमने कब चाहा था प्यार करें
सच तो यह है भूल हुई अंजाने में..!!