रोज़ जीते है रोज़ मरते है,
क्या ज़िंदगी इसी को कहते हैं ?
कभी आ जाती है होठों पे हँसी,
कभी आँखों से अश्क बहते हैं,
अब तो आदत सी बन गयी है ये,
मुस्कुराते हैं दर्द सहते हैं,
कहीं भी जाएँ हम कहीं भी रहें,
उनकी यादों में खोए रहते हैं,
ऐसा भी नहीं के वो हमें मिलते ना हों,
पास आते हैं दूर रहते हैं..!!