सोचता हूँ क्यूँ इश्क़ फरमाया ?
बेसबब वक़्त को किया जाया...
लुटाकर अपना सुबकुछ सब गँवाकर,
किसी को पाया भी तो क्या पाया ?
तमाम उम्र जद्दोजहद के बाद,
सुकून पाया भी तो क्या पाया ?
संभालता रहा अक्सर जो हमें,
क्यूँ उसी ने है आज ठुकराया ?
दिल मेरा टूट भी गया तो क्या,
तू मगर सोच तूने क्या पाया ?
वही निकला है जान का दुश्मन,
जिसको समझा था अपना हमसाया..!!