बात ये नही वो इतना सितमगर क्यूँ है ?
इस क़दर आदमी पत्थर क्यूँ है ?
हम तो पहले से तुझपे मर मिटे हैं,
फिर तेरे हाथ में खंज़र क्यूँ है ?
तू भी इंसान है एक मेरी तरह,
दिल मेरा तेरा मुंतज़ीर क्यूँ है ?
सिवाए हुस्न कोई बात और नही उसमें,
जाने इस शहर में वो इतना नामवर क्यूँ है ?
वो अगर खुश है तो मुझको कोई मलाल नही,
पर मेरे गम से बेख़बर क्यूँ है ?
खुदा पर तो यकीं हमको पूरा है मुझे
फिर हर दुआ हमारी बे-असर क्यूँ है ?