ज़िंदा भी तो हम अपने ही क़ातिल के सहारे हैं,
बुरे है तो क्या हमें वो फिर भी प्यारे हैं !
जिन के ख्वाबों से आँखों में चुभन होती है,
हाँ वही खाव तो मेरी निगाहों के उजाले हैं !
दुखाकर दिल को पूछते हैं हाल कैसा है,
कैसे कह दें के हम आपके ही गम के मारे हैं !
ये कैसी आज़माइश है दरिया में हमारी,
हम डूबने वाले हैं वो फिर भी किनारे हैं !
बेशक मुझे तुम याद ना करो लेकिन,
क्या वो पल भी भुला दोगे जो संग-संग गुज़ारे हैं !!