जब निगाहें वो हमसे चुराने लगे,
तब कही होश अपने ठिकाने लगे,
बहिर-ए-उलफत से बाहर निकल ना सके,
डूबते - डूबते भी जमाने लगे,
है यही दर्द की इंतेहाँ शायद,
रोते -रोते कोई मुस्कुराने लगे,
बनके हमदर्द मिला था मुझसे,
हम उसे हाल-ए-दिल सुनाने लगे,
जब हर गये बाजी मुक़द्दर से,
मात पर अपनी खुद मुस्कुराने लगे..!!