ज़िद्दी ये दिल कोई बात मेरी मानता नही,
कम्बख़्त मेरी बेवशी को जनता नही,
ए दिल कहे तो तेरे लिए जान भी दे दूं,
एक उसके सिवा कुछ भी मगर माँगता नही,
समझा है मैने दर्द तेरा पर मै क्या करूँ,
इस दर्द की दवा तो कोई जनता नही,
ये किसकी आरजू है किसका ख़याल है,
आँखों से मेरी अलविदा जो चाहता नही,
नादान तो ये नही जो मेरी बात ना समझे,
हर बात जनता है मगर मानता नही..!!