बिना मोहब्बत कुछ मज़ा भी नही,
इससे बढ़कर कोई सज़ा भी नही,
गुल ये झड़ जाएँगे तो जानोगे,
ये हसीं बागवाँ कुछ भी नही,
मुंतज़िर कौन हो टूटे दिल का,
जिसमें आहों के सिवा कुछ भी नही,
हमने खुद अपनी ख़ताओं की सज़ा पाई है,
जमाने से गिला कुछ भी नही,
मुझे रुलाकर तू खुद भी गमजदा है,
तू तो पूरा बेवफा भी नही,
ज़िंदगी ने भी ये किस मोड़ पर लाकर छोड़ा,
जहाँ सवालों के सिवा कुछ भी नही,
उसके पहलू में कायनात मेरी,
ये जहाँ उसके बिना कुछ भी नही,
गर्मी -ए- हसरातों से ज़िंदा हैं,
दिल में धड़कन के सिवा कुछ भी नही,
हम तो उसकी नज़र के प्यासे हैं,
मयक़दा कुछ भी नही..!!