हम अपने दर पे निगाहें लगाके बैठे हैं,
सर-ए-आम भी बैठे हैं दीवाने हुजूर के,
कुछ ऐसे भी हैं जो चिलमन से लगे बैठे हैं,
हसरत तो है दीदार की हिम्मत मगर नही,
कई मुंतज़िर हैं ऐसे जो नज़रें झुकाके बैठे हैं,
क्या खूब मुश्किल है ये इज़हार-ए-वफ़ा भी,
एक तूफ़ां को हम दिल में दबाके बैठे हैं,
हमने हर शय से फेर ली है नज़र जिनके लिए,
हाँ वही हमसे निगाहें चुराके बैठे हैं,
हम उनके इशारों पे थिरकते हैं ,
वो हैं के इत्मिनान से तकिया लगाके बैठे हैं..!!