जाने इस दिल को तेरे नाम से निसवत क्यू है,
बताना ज़िंदगी को तेरी ज़रूरत क्यूँ है,
सारी दुनिया से शिकायत क्यूँ है,
क्यूँ नही लगती कहीं तबीयत तेरे बगैर,
बताना तुझसे मुझे इतनी मोहब्बत क्यूँ है,
मै क्यूँ ना मान लूँ नसीबों की बात,
मुझमे हालत से लड़ने की अदावत क्यूँ है,
यूँ तो और भी अज़ीज़-ओ-खास हैं मेरे एहबाब,
हर सख्श से आला तेरी शोहबत क्यूँ है,
सनासे तो और भी हैं इस शहर में मेरे,
तेरे ही साथ रहने की मुझे आदत क्यूँ है,
धोखे ही मिल रहे हैं सभी से फिर भी,
मुझे हर आदमी से इतनी सखावत क्यू है,
⏪ निसबत = सम्बंध, अदावत =शत्रुता, एहबाब = मित्र, सखावत = उदारता ⏩