ज़िन्दगी में कुछ पाया - कुछ खोया,
लेकिन तुझे खोना नही चाहता माँ
लेकिन तुझे रुलाना नही चाहता माँ,
याद आती है बहुत तेरी बचपन की लोरी
इसलिए तेरी गोद के सिवा कहीं और सोना नही चाहता माँ,
कितना डॉटा था तूने बचपन में
अब क्यों नही डाँटती माँ,
कैसे ज़िंदा रह पाऊंगा में तेरे बग़ैर
कभी फुर्सत मिले मुझे तू ये तो बता माँ,
ज़िंदगी तूने तो मेरी रोशन कर दी
लेकिन खुद किस अँधेरे में खो गई माँ,
कभी तो खिला मुझे अपने हाथ की रोटी
आज कल भूख बहुत लगती है मुझे माँ,
कहाँ हो तुम, आकर देखो मेरी बेबसी का आलम
ना जाने किस क़ाश में निकल जाये साँसे मेरी ,
बस एक बार गले से लगा लो माँ