फिर किसी की याद ने रात भर जगाया हमको,
मोहब्बत की तपिश ने बेमौत जलाया हमको,
न दिन को करार मिला न रात को सुकून,
आखिर क्या गर्ज़ थी खुदा को जो बनाया हमको,
चिराग बनकर हम जलाते रहे उल्फ़त की शमा,
पर नफरत की आंधियों ने हमेशा डराया हमको,
बे-वफाओं से भला क्या करते वफा की उम्मीद,
हमेशा उनके दिये जख़्मों ने गले लगाया हमको..!!
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