रिसते हुए ज़ख्मों को कुरेदने चले आते हैं,
बामुश्किल भूला हूं मैं उनके दिये वो ग़म,
फिर भी जानें क्यों वो दर्द देने चले आते हैं,
अब नहीं बचा मोहब्बत के नाम पर कुछ,
फिर क्यों मन में तूफान उठाने चले आते हैं,
वादा किया था कोई रिश्ता नहीं शेष अब,
वो फिर भी क्यों मेरे ख्वाबों में चले आते हैं..!!
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