तन्हा हैं राहें मेरी, ज़िंदगी वीरानी है,
तक़दीर भी नही साथ अपने.....
हर मोड़ पर सिख्सत खाई है,
मज़िल की ख़बर है मुझको, फिर भी तन्हाई है,
लाखों जतन कर के भी ख़ाली हाथ हूँ आता,
क्या करू की कुछ समझ नही आता..!!
जागती है निगाहें मेरी, पर सोया-सोया लगता हूँ,
जब भी कोशिश करता हूँ मुस्कुराने की , रोया-रोया लगता हूँ,
रहता हूँ महफ़िलो में कभी, पर तन्हा-तन्हा लगता हूँ,
अब थक गया ज़िंदगी से, नफ़रत हो गई नसीब से,
क्यों खेलती है ज़िंदगी इस तरह, कोई मुझको समझता,
क्या करू की कुछ समझ नही आता..!!
एक बचपन का साथ जो था सबसे ख़ास,
एक यार जो हर गम, हर मोड़ पर था मेरे साथ,
एक प्यार, जिसका था सुरूर मुझको,
एक किस्मत, जिस पर था गुरूर मुझको,
एक जिंदगी, जिसमे था सुकून मुझको,
"मेरी क़िस्मत, मेरी ज़िंदगी, मेरा प्यार, मेरा यार और मेरे बचपन का साथ",
सब कुछ था मेरे पास.…
सब छीन लिया क्यों फिर मेरा एक साथ,
अब तन्हा है दिल मेरा, वीरानी है ज़िन्दगी,
रेहमतो का तल्ब्गार हूँ, अधूरी है बन्दगी,
कहाँ है "रब" मेरा, मुझे नज़र नही आता,
क्या करू की कुछ समझ नही आता..!!
"रब" गर जो मिले मुझे मिले कहीं,
तो उस "रब" से पूछूंगा वहीं,
" की मुझे मेरी ख़ता तो बता दो,
ये सज़ा मुकरर की है मेरी, उसकी वज़ह तो बता दो",
मैंने भी तेरी बन्दगी में ये ज़िन्दगी गुज़ारी है,
फिर क्यों इन आँखों में तेरे लिए रुसवाई है,
ए मेरे रब्बा, अब तू ही बता…
मुझे अब तेरे सिवा कोई दूजा नज़र नहीं आता,
क्या करू की कुछ समझ नहीं आता..!!
(KJ00003)